क्या ‘भारतरत्न’ साध्य को साधने का ‘साधन’ बन गया है

राजीव खंडेलवाल
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं बैतूल के पूर्व सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)

वर्ष 2024 के आरंभ से अभी तक प्रथम बार में 2 और दूसरी बार में 3 रत्नों को भारत रत्न देने की घोषणा केंद्र सरकार द्वारा की गई। यद्यपि इसकी प्रथम जानकारी केंद्र सरकार द्वारा नहीं, अपितु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट से देश को मिली। बेशक! भारतरत्न देश का ‘सर्वोच्च नागरिक सम्मान’ है। इसे देने के नियम और प्रक्रिया है। वर्ष 1954 में राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा स्थापित भारत रत्न पुरस्कार मरणोपरांत प्रदान करने की अवधारणा स्थापना के समय नहीं थी, जो वर्ष 1966 में जोड़ी गई। भारत रत्न की सिफारिश प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को करते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पूर्व राष्ट्रपति व वैज्ञानिक ‘मिसाइलमैन’ डॉक्टर अब्दुल कलाम आजाद जैसे व्यक्तियों को देने से इस बात की पुष्टि भी होती है और सम्मान की रक्षा भी होती है। परंतु सबसे अधिक समय से लंबित मांग हॉकी के जादूगर ‘मेजर ध्यानचंद’ को भारत रत्न अभी तक न दिए जाने से। जब कभी कोई नए व्यक्ति को भारत रत्न दिये जाने की घोषणा की जाती है, सम्मान की गरिमा पर स्वाभाविक रूप से प्रश्न वाचक चिन्ह लग जाते हैं।
क्या ‘भारतरत्न’ देने की प्रक्रिया का पालन किया गया है, अथवा नहीं? इस पर कुछ पक्षों द्वारा आपत्ति की गई है, जो वर्तमान में देश में विद्यमान राजनीति और स्वतंत्रता के बाद से अभी तक देश में दिए गए कुल 52 भारत रत्नों को देखते हुए यह कोई नई बात नहीं है। कहते हैं न कि ‘धौले पर ही दाग़ लगे’। अत: उक्त आपत्तियों का औचित्य न तो कोई आज है और न ही पूर्व में था। नियमानुसार 1 वर्ष में तीन ‘भारतरत्न’ दिए जा सकते हैं। इस आधार पर भी आपत्ति की गई है। परंतु ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, वर्ष 1992 एवं 2015 में भी 4 भारतरत्न दिए जा चुके हैं। यद्यपि अभी वर्ष प्रारंभ हुए दो महीने ही हुए है, जहां अभी तक 5 भारतरत्न दिए जा चुके हैं, जिसे आगे और दिये जाने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
देश के पहले अति पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री बने, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री और देश के ‘हिन्दू सम्राट’ कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी, देश के पूर्व प्रधानमंत्री और गैर कांग्रेसवाद का झंडा गाडऩे वाले किसान नेता चौधरी चरण सिंह, देश में आर्थिक क्रांति और विदेशी निवेश को लाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और देश के कृषि वैज्ञानिक ‘हरित क्रांति के जनक’ और स्वामीनाथन आयोग के अध्यक्ष के रूप में जनता को किसानों के लिए लागत मूल्य का दोहरा फसल मूल्य (सी-2+50 मूल्य) देने की सिफारिश करने वाले जनसंख्या की 70 प्रतिशत किसानों के मसीहा डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भारतरत्न देने की घोषणा की गई है। मोदी सरकार ने अभी तक कुल 10 भारतरत्न दिए हैं। इनमें से मात्र 3 ही ऐसे थे, जिनका संबंध संघ अथवा भाजपा से रहा, लालकष्ण आडवाणी, नानाजी देशमुख और अटल बिहारी वाजपेयी।
समालोचना कम आलोचना ही आज कल ज्यादा होती है, ‘‘दुनिया खाए बिना रह जाए, लेकिन कहे बिना नहीं रहे’’, तथापि अधिकार सबको है। उसी तारमत्य में अभी दिए गए भारतरत्नों पर इस आधार में आपत्ति की जा रही है कि लालकृष्ण आडवाणी जिन पर ‘जैन डायरी’ में नाम आने पर वे ‘हवाला कांड’ के आरोपी बने थे, जिन्होंने रथ यात्रा निकाल कर देश का साम्प्रदायिक सद्भाव पर चोट पहुंचाई? जिन्होंने बाबरी ढांचा को ध्वस्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वहीं पीवी नरसिम्हा राव ने मूक प्रधानमंत्री रह कर तत्समय आवश्यक कार्रवाई न कर ढांचा ढहने दिया। चौधरी चरण सिंह जो ‘संघ’ के विरोधी थे और संघ और भाजपा की ‘‘दोहरी सदस्यता’’ के मुद्दे उठाने के पीछे उनका ही प्रमुख हाथ था। कर्पूरी ठाकुर जिनके द्वारा शायद सर्वप्रथम अति पिछड़े वर्ग और गरीब सवर्ण वर्ग को आरक्षण दिया गया था, जिनकी सरकार से तत्कालीन जनसंघ ने समर्थन वापस लेकर कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में बनी सरकार को गिरा दिया था। डॉ. एमएस स्वामीनाथन को दिया गया, परन्तु उनकी रिपोर्ट को लागू न करके 700 से ज्यादा किसानों को मरने दिया गया। आज भी स्वामीनाथन रिपोर्ट की सबसे महत्वपूर्ण सिफारिश सी-2+50 प्रतिशत फसल का न्यूनतम मूल्य देना लागू नहीं किया गया है। यदि हां डॉ. एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न दिये जाने के साथ उक्त घोषणा भी कर दी जाती, तब सम्मान में चार-चांद लग जाते।
आलोचकों की इन आलोचनाओं में ही जवाब भी छुपा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अपनी विचारधारा के विरोधी पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणब मुखर्जी, पूर्व कांग्रेसी प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और विचारधारा के आलोचक चौधरी चरण सिंह और कर्पूरी ठाकुर को सम्मान देने का साहस किया है। लेकिन इस साहस के पीछे का सच यह है कि ‘‘बारातें तो दूल्हों के साथ ही चलती हैं’’। वैसे तो आज की राजनीति में कोई भी निर्णय, सम्मान, कानून जो भी पारित किये जाते हैं, वे सब सर्वजन हिताय के लिए ही किये जाते हैं, ऐसा दावा हमेशा किया जाता है। परन्तु प्रत्येक निर्णय में राजनीति को दिशा देने वाला पुट तो होता ही है, इससे कौन इंकार कर सकता है कि ज्ञानपीठ और पद्म पुरस्कारों से लेकर नोबेल, बुकर, मैग्सेसे, पुलित्जऱ जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों के पीछे कोई न कोई चातुर्य युक्ति है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भारतरत्न की ‘‘टाइमिंग’’ को लेकर भी आलोचना की जा रही है। नीतीश कुमार को एनडीए में लाने के लिए कर्पूरी ठाकुर को दिया गया। जयंत चौधरी को एनडीए में लाने के लिए उनके द्वारा चौधरी चरण सिंह को दिया गया। आगामी लोकसभा चुनाव में दक्षिण में कमजोर स्थिति को सुधारने के लिए पीवी नरसिम्हा राव, डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भारतरत्न दिया गया, तो पार्टी के भीतर लाल कृष्ण आडवाणी को मार्गदर्शक मंडल में रखने पर हो रही आलोचना को समाप्त करने के लिए उन्हें भारतरत्न दिया गया। इसे कहते हैं ‘‘टट्टे की ओट से शिकार करना’’। अब यदि ‘‘टाइमिंग’’ की कला दूसरे प्रधानमंत्रियों में नहीं रही है तो इसके लिए तो नरेन्द्र मोदी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है? ‘‘पहले मारे सो मीर’’। किसी भी ‘खेल’ में फिर राजनीति भी तो एक ‘खेल’ ही है, समय पर दांव चलने पर ही पूर्ण सफलता मिलती है।
भारतरत्न देश का ‘‘सर्वोच्च सम्मान’’ होने के कारण उसकी तुलना अन्य किसी सम्मान से की ही नहीं जा सकती है। इसलिए उसकी ‘‘गरिमा’’ पवित्रता बनाए रखना एक संवैधानिक व नैतिक कर्तव्य भी है। भारतरत्न न तो रेवडिय़ां है और न ही किसी साध्य को साधने का साधन है, जिसका उपयोग करके उसकी महत्ता और गरिमा को कमजोर करने की कोशिश की जाए? वैसे तो इस देश में हर पल राजनीति होती है, फिर भी राजनीति के लिए विशाल क्षेत्र पड़ा है। तब हम क्या ‘‘भारतरत्न’’ के सम्मान को राजनीति से परे नहीं रख सकते है?
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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