प्रसिद्ध पुरातत्वविद् मोहम्मद बोले- धार की भोजशाला सरस्वती मंदिर था

ग्वालियर। मध्य प्रदेश के धार जिले में विवादास्पद भोजशाला या कमल मौला मस्जिद परिसर के संबंध में प्रसिद्ध पुरातत्वविद् केके मोहम्मद ने कहा कि विवादास्पद स्थल एक सरस्वती मंदिर था। बाद में इसे इस्लामी उपासना स्थल में बदल दिया गया। उन्होंने कहा कि हिंदू और मुसलमान दोनों पक्षों को अदालत के फैसले का पालन करना चाहिए।

उन्हें ऐसे स्थानों पर मतभेदों को दूर करने के लिए एकसाथ बैठने के अलावा उपासना स्थल अधिनियम, 1991 का सम्मान करना चाहिए। मोहम्मद ने कहा कि मुसलमानों को भी मथुरा और काशी को लेकर हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि मोहम्मद 1976-77 में अयोध्या में विवादित स्थल पर प्रोफेसर बीबी लाल के नेतृत्व में पहली खुदाई करने वाली टीम का हिस्सा थे।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर सर्वे

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेशों के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले में विवादित भोजशाला परिसर का सर्वेक्षण कर रहा है। हिंदुओं का मानना है कि यह देवी वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर है और मुस्लिम समुदाय इसे कमल मौला मस्जिद कहता है।

मोहम्मद ने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि मथुरा और काशी हिंदुओं के लिए वैसे ही हैं, जैसे मुस्लिमों के लिए मक्का और मदीना। उन्होंने कहा कि मुस्लिमों को हिंदुओं की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए। काशी भगवान शिव से जुड़ा है तो वहीं मथुरा भगवान कृष्ण का जन्मस्थान है। इसे कहीं और स्थानांतरित नहीं किया जा सकता, लेकिन मुस्लिमों के लिए यह सिर्फ एक मस्जिद है। चूंकि, यह सीधे तौर पर न तो पैगंबर मोहम्मद से जुड़ी है और न ही उलियास से। इसलिए उन्हें कहीं और स्थानांतरित किया जा सकता है।

यह है भोजशाला विवाद

धार की भोजशाला राजा भोज ने बनवाई थी। जिला प्रशासन की वेबसाइट के अनुसार यह एक यूनिवर्सिटी थी, जिसमें वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। मुस्लिम शासक ने इसे मस्जिद में बदल दिया था। इसके अवशेष प्रसिद्ध मौलाना कमालुद्दीन मस्जिद में भी देखे जा सकते हैं। यह मस्जिद भोजशाला के कैंपस में ही स्थित है जबकि देवी प्रतिमा लंदन के म्यूजियम में रखी है।

क्या है 1902 की रिपोर्ट में

हाईकोर्ट में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है। वर्ष 1902 में लॉर्ड कर्जन धार, मांडू के दौरे पर आए थे। उन्होंने भोजशाला के रखरखाव के लिए 50 हजार रुपये खर्च करने की मंजूरी दी थी। तब सर्वे भी किया गया था। 1951 को धार भोजशाला को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है। तब हुए नोटिफिकेशन में भोजशाला और कमाल मौला की मस्जिद का उल्लेख है। याचिका हिंदू फॉर जस्टिस ट्रस्ट की तरफ से लगाई गई थी। इसके अलावा छह अन्य याचिकाएं भी इस मामले में पूर्व में लगी हैं। ट्रस्ट की तरफ से अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने पक्ष रखते हुए बताया था कि 1902 में हुए सर्वे में भोजशाला में हिंदू चिन्ह, संस्कृत के शब्द आदि पाए गए हैं। इसकी वैज्ञानिक तरीके से जांच होना चाहिए, ताकि स्थिति स्पष्ट हो।

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